India has a history of thousands of years old. For centuries, the architecture of India has marveled not only domestic tourism but also international.
In this series, we bring to some interesting facts about Ancient Temples of India, to help you appreciate the architecture and the designs, much better when you visit.
Kandariya Mahadev Temple,
Khajuraho
Did you know this about our temples?
External appearance of our temple looks like a Mountain.The temple is built to resemble the Mount Meru. Mount Meru also called Sumeru (Divine Meru) or Mahaameru (Great Meru), is the “Pancha Shikhara Parvatam” (Five Peaked Mountain) revered by Sanatanis as the abode of Gods & centre of the “Bhuugolam” where “Prapancha Kriya” happens.
In this picture kandariya Mahadev Temple, Khajuraho – we can see upgrading 5 Shikharas representing the Mount Meru. What does that mean?
When you are at entrance of the temple (Number 1, Lower Peak) Urge for god is less. As we go ahead inside the temple towards main deity, the height of peaks is increasing. Same way urge in us for god also increases as we proceed towards Garbha Griha.
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*** क्या आप हमारे मंदिरों के बारे में जानते हैं?
हमारे मंदिर का बाहरी स्वरूप पहाड़ जैसा दिखता है। मंदिर मेरु पर्वत के सदृश है। माउंट मेरु को सुमेरु (दिव्य मेरु) या महामेरु (महान मेरु) भी कहा जाता है, “पंच शिखर पर्वत” (पांच शिखर वाला पर्वत) है जो सनातनियों द्वारा देवताओं और “भुगुलाम” के केंद्र के रूप में पूजनीय है, जहां “प्रपंच क्रिया” होती है।
इस चित्र में कंधारिया महादेव मंदिर, खजुराहो – हम पांच शिखर को मेरु पर्वत का प्रतिनिधित्व करते हुए देख सकते हैं। इसका क्या मतलब है? जब आप मंदिर के प्रवेश द्वार पर होते हैं (नंबर 1, लोअर पीक) भगवान के लिए आग्रह कम है। जैसे ही हम मुख्य देवता की ओर मंदिर के अंदर आगे बढ़ते हैं, चोटियों की ऊंचाई बढ़ती जा रही है।
जैसे-जैसे हम गरबा गृह की ओर बढ़ते हैं, वैसे-वैसे ईश्वर के लिए भी हमसे आग्रह बढ़ता जाता है।
Bateshwar Group Of Temples,
Morena
This 1400 Yrs old magnificent group of temples were renovated by Padmashri KK Mohammed after convincing the dacoit group of Nirbhay Singh Gurjar, who camped here.
In one of his web talks yesterday he said that he could erect 80 temples in 3 crores of rupees by 2010 and lamented that rupees 8 crore more is needed to erect 120 more temples which would make this place look like heaven.
1400 साल पुराने इस भव्य मंदिरों का जीर्णोद्धार पद्मश्री केके मोहम्मद द्वारा निर्भय सिंह गुर्जर के डकैत समूह को समझाने के बाद किया गया, जिन्होंने यहां डेरा डाला था।
कल अपनी एक वेब वार्ता में उन्होंने कहा कि उन्होंने 2010 तक 80 मंदिरों को 3 करोड़ रुपये में बनवा दिया और इस बात पर जोर दिया कि 120 और मंदिरों को खड़ा करने के लिए 8 करोड़ रुपये की जरूरत है जो इस जगह को स्वर्ग जैसा बना देगा।
Virupaksha Temple,
Pattadakallu, Karnataka
This magnificent 1500 Yrs old “Suryodayam” (Sunrise) episode is from “Purva Dwara” (Eastern Entrance) of Virupaksha Temple, Pattadakkal.
In this small but elaborate panel Surya Bhagawan is holding 2 Padma(s), riding his Ratha by his Rahta Sarathi (Charioteer) Aruna and Sapta Ashva(s) (7 Horses). The 7 horses represent the 7 Vedic meters – Gayatri, Brihati, Usnik, Jagati, Tristup, Anustup & Pankti. The study of vedic meters is called “Chandas”. Flanked on both sides of Surya by his Devi(s) – Usha & Prathyusha (Day & Night). The Usha & Prathyusha are seen striking off the darkness with their bow and arrows. At the dawn we can see sky clearing off, different sections of the society becoming active for their daily works.
The two Makaras on both the sides of Surya represent the “Vahana of Varuna & Varuni” or “Vahana of KaamaDeva”. Varuna is result of Rashmi (Sunlight) of Surya. In this episode the attribute of “Kaama” in the dark is driven away by the Suryodayam. “Just Imagine the magnitude of information this single Panel contains”
यह शानदार 1500 साल पुराना “सूर्योदय” वीरुपक्ष मंदिर, पट्टडक्कल के “पूर्वा द्वार”से है।
इस छोटे लेकिन विस्तृत नामिका में सूर्य भगवान 2 पद्म (ओं) को धारण कर रहे हैं, उनकी रथ सारथी अरुणा और सप्त अश्व (7 घोड़े) द्वारा रथ की सवारी कर रहे हैं। 7 घोड़े 7 वैदिक छंद का प्रतिनिधित्व करते हैं – गायत्री, बृहती, उस्निक, जगती, त्रिस्तूप, अनस्ताप और पंक्ति।
सूर्य के दोनों किनारों पर उनकी देवी (ओं) – उषा और प्रत्युषा (दिन और रात ) द्वारा फहराया गया।
उषा और प्रत्यूषा अपने धनुष और बाणों से अंधेरे को दूर करती हुई दिखाई देती हैं।
भोर में हम आकाश को साफ करते हुए देख सकते हैं, समाज के विभिन्न वर्ग अपने दैनिक कार्यों के लिए सक्रिय हो रहे हैं।
सूर्या के दोनों ओर के दो मकर “ वरुण के स्वर” या “कामदेव के वहाण” का प्रतिनिधित्व करते हैं।
वरुण सूर्या की रश्मि (सूरज की रोशनी) का परिणाम है। इस कड़ी में सूर्य में “काम” की विशेषता सूर्योदय से दूर है। “बस इस नामिका में शामिल जानकारी के परिमाण की कल्पना करें”
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